सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

एक तान निःशब्द : कुछ भी

निःशब्द को थामे कितने एकाकी निकल आए है हम एक चौड़ी सपाट रेखा में दौड़ती जाती सड़क उस क्षितिज को छूती सी प्रतीत होती थी जिसके जितने निकट जाओ वह उतना ही दूर होती जाती है और जितना दूर , उतना ही निकट अजीब विरोधाभास है ना । हाँ , इसे ही सामंजस्य का पर्याय भी माना जा सकता है । स्व के अधीन अहं

को रख के देखे तो शायद अहं से छिटकती चिंगारियाँ अवसर को प्राप्त ही न हो पायेंगे । चलो फिर चलते है उस सीधे रास्ते पर जहाँ किनारे पर कुछ हरियाली है , कुछ पतझड़ है गर्मी की लू में झुलसते रुखे पत्ते है तो वसंत के अलस हरीतिमा को लिए अनायास बुदबुद लाल कोपल भी मौजूद है ,वही सूखा ठूँठ भी है गंभीर को अपने में दबाए समय बड़े - बुजुर्ग सा वरिष्ठ अनगिन कहानियाँ कथाएँ समेटे खडकती पत्तियाँ उसकी इन्हीं कहानियों को सुनकर हुँकारें भरती है , तुमने सुना था क्या ? शायद मैंनें नहीं सुना था पर विचलन का रंगपर्याय भी सुंदर होता है उसकी सुंदर परिणित का भी यहीं उपहार रहा कि आज इस राह पर चलते जाने के अतिरिक्त कुछ क्षण रुक मैनें किसी से संवाद किया किसी का संवाद सुना । वह संगीत था कि प्रार्थना का रव , पढ़ाई की बात थी या रोजगार की , देहाती थी या शहर की जुबान या कुछ अलग भाव में डूबा मौन था जो मुखर हुआ सा श्रवणेन्द्रियों में जा - जा गूँजायमान निर्झर सा स्वर भर रहा था एक विजन को मानस फलक पर अंकित करता सा विस्तृत जलधारा जिसका सोता भी वहीं है और संगम भी वहीं है , कलकल नाद करता हुआ ..!


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

जैसे ये सूरजमुखी

हर  दिन  एक  नई  शुरुआत  है  ।  नए  सवेरे  के  साथ   बीते  ओस  कण  संवाहक  है  -  साथ  चल  देने  के ,  बिना  किसी  तर्कजाल  में   फसे   आत्मा  की  आवाज  अपने  दिल  की  धड़कन  के  साथ   धड़कने  का  फलसफा  ।  तट  पर  तूफानों  का  आना -  जाना   लगा  ही  रहता  है ,  पर  इस  डर  से  कश्तियाँ  सागर  में  उतरने  से  इंकार   नहीं  कर देती  । 

हर पल अपने में खास है

  हर  पल  अपने   में   खास  है   हर  पल  को  खुलकर  जीयो  जिंदगी  को  जीभरकर  जीओ दुख   हो  या  सुख   अविचल मुश्किलों  को  भी  हँसकर  मिलो अपनी  एक  स्मित  से  दुख  में  भी किसी  का  दिल  जो रोशन  करे चेहरे  पे  वो  मुस्कान  बनी  रहे