हर दिन एक नई शुरुआत है । नए सवेरे के साथ बीते ओस कण संवाहक है - साथ चल देने के , बिना किसी तर्कजाल में फसे आत्मा की आवाज अपने दिल की धड़कन के साथ धड़कने का फलसफा । तट पर तूफानों का आना - जाना लगा ही रहता है , पर इस डर से कश्तियाँ सागर में उतरने से इंकार नहीं कर देती ।
निःशब्द को थामे कितने एकाकी निकल आए है हम एक चौड़ी सपाट रेखा में दौड़ती जाती सड़क उस क्षितिज को छूती सी प्रतीत होती थी जिसके जितने निकट जाओ वह उतना ही दूर होती जाती है और जितना दूर , उतना ही निकट अजीब विरोधाभास है ना । हाँ , इसे ही सामंजस्य का पर्याय भी माना जा सकता है । स्व के अधीन अहं
हर पल अपने में खास है हर पल को खुलकर जीयो जिंदगी को जीभरकर जीओ दुख हो या सुख अविचल मुश्किलों को भी हँसकर मिलो अपनी एक स्मित से दुख में भी किसी का दिल जो रोशन करे चेहरे पे वो मुस्कान बनी रहे
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें